Best Muharram Shayari in Hindi | मुहर्रम पर बेहतरीन हिंदी शायरियाँ

नमस्कार दोस्तों! आज हम आपके लिए मुहर्रम शायरी हिंदी में का एक खास संग्रह लेकर आए हैं। मुहर्रम, इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना, इस्लामिक आस्था में अत्यधिक महत्व रखता है। इस महीने का दसवां दिन, जिसे ‘आशूरा’ के नाम से जाना जाता है, पैगंबर हजरत मोहम्मद के प्यारे पोते हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाता है।

हजरत इमाम हुसैन ने अपने परिवार और साथियों के साथ कर्बला की ऐतिहासिक लड़ाई में न्याय, समानता, और अत्याचार के खिलाफ़ बहादुरी से संघर्ष किया।

इस पवित्र दिन पर, मुस्लिम समुदाय जुलूस और ताजिया निकालकर उनके बलिदान का सम्मान करता है, जो उनके द्वारा स्थापित मूल्यों की झलक पेश करता है। उनकी अमर विरासत को श्रद्धांजलि देने के लिए, हमने मुहर्रम शायरी हिंदी में का एक भावपूर्ण और प्रेरणादायक संग्रह तैयार किया है। इन शायरियों को अपने दोस्तों और प्रियजनों के साथ साझा करें, और हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उनके बलिदान को सम्मानित करें।

Muharram Shayari in Hindi

सजदे से कर्बला को बंदगी मिल गई

सजदे से कर्बला को बंदगी मिल गई,
सब्र से उम्मत को ज़‍िंदगी मिल गई।
एक चमन फातिमा का गुज़रा,
मगर सारे इस्लाम को ज़‍िंदगी मिल गई।

एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी जमीन

एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी जमीन,
है मेरे नसीब में परचम हुसैन का।
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख,
होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।

कर्बला की जमीं पर खून बहा

कर्बला की जमीं पर खून बहा,
कत्लेआम का मंजर सजा।
दर्द और दुखों से भरा था सारा जहां,
लेकिन फौलादी हौसले को शहीद का नाम मिला।

मुहर्रम पर याद करो वो कुर्बानी

मुहर्रम पर याद करो वो कुर्बानी,
जो सिखा गया सही अर्थ इस्लामी।
ना डिगा वो हौसलों से अपने,
काटकर सर सिखाई असल जिंदगानी।

करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने

करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने,
ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने।
लहू जो बह गया कर्बला में उनके,
मकसद को समझो तो कोई बात बने।

अपनी तकदीर जगाते हैं तेरे मातम से

अपनी तकदीर जगाते हैं तेरे मातम से,
खून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से।
अपनी इजहारे-ए-अकीदत का सिलसिला ये है,
हम नया साल मनाते हैं तेरे मातम से।

क्या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का

क्या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का,
अब तक ज़मीन पर कर्ज़ है सजदा हुसैन का।
झोली फैलाकर मांग लो मुमीनो,
हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।

जन्नत की आरज़ू में कहां जा रहे हैं लोग

जन्नत की आरज़ू में कहां जा रहे हैं लोग,
जन्नत तो कर्बला में खरीदी हुसैन ने।
दुनिया-ओ-आखरात में जो रहना हो चैन से,
जीना अली से सीखो, मरना हुसैन से।

ख़ुदा की जिस पर रहमत हो वो हुसैन हैं

ख़ुदा की जिस पर रहमत हो, वो हुसैन हैं,
जो इंसाफ और सत्य के लिए लड़ जाए, वो हुसैन हैं।

पानी का तलब हो तो एक काम किया कर

पानी का तलब हो तो एक काम किया कर,
कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर।
दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत,
जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।

फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई

फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई,
वफ़ा भी झूम उठे, यूँ वफ़ा करे कोई।
नमाज़ 1400 सालों से इंतजार में है,
हुसैन की तरह मुझे अदा करे कोई।

कर्बला की कहानी में कत्लेआम था

कर्बला की कहानी में कत्लेआम था,
लेकिन हौसलों के आगे हर कोई गुलाम था।
खुदा के बन्दे ने शहीद की कुर्बानी दी,
इसलिए उसका नाम पैगाम बना।

एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी ज़मीन

एक दिन बड़े गुरूर से कहने लगी ज़मीन,
ऐ मेरे नसीब में परचम हुसैन का।
फिर चाँद ने कहा मेरे सीने के दाग देख,
होता है आसमान पर भी मातम हुसैन का।

गुरूर टूट गया कोई मर्तबा ना मिला

गुरूर टूट गया, कोई मर्तबा ना मिला,
सितम के बाद भी कुछ हासिल जफा ना मिला।
सिर-ऐ-हुसैन मिला है यजीद को लेकिन,
शिकस्त यह है कि फिर भी झुका हुआ ना मिला।

वो जिसने अपने नाना का वादा वफा कर दिया

वो जिसने अपने नाना का वादा वफा कर दिया,
घर का घर सुपुर्द-ए-खुदा कर दिया।
नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम,
उस हुसैन इब्न अली को लाखों सलाम।

आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे

आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे,
ताबीर में इमाम का जलवा तो दिखायी दे।
ए इब्न-ऐ-मुर्तजा, सूरज भी एक छोटा सा,
जरा दिखायी दे।

न हिला पाया वो रब की मैहर को

न हिला पाया वो रब की मैहर को,
भले ही जीत गया वो कायर जंग।
पर जो मौला के डर पर बैखोफ शहीद हुआ,
वही था असली और सच्चा पैगंबर।

दिल से निकली दुआ है हमारी

दिल से निकली दुआ है हमारी,
मिले आपको दुनिया में खुशियां सारी।
गम ना दे आपको खुदा कभी,
चाहे तो एक खुशी कम कर दे हमारी।
जन्नत की आरज़ू में कहां जा रहे हैं लोग।

कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज है

कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज है,
उस नवासे पर मुहम्मद को नाज है।
यूँ तो लाखों सिर झुके सजदे में,
लेकिन हुसैन ने वो सजदा किया जिस पर खुदा को नाज है।

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है,
ये आसमान में उदास बादल तेरी मोहब्बत में रो रहा है।
सबा भी जो गुजरे कर्बला से तो उसे कहता है अर्श वाला,
तू धीरे गुजर, यहां मेरा हुसैन सो रहा है।

क्या हक़ अदा करेगा ज़माना हुसैन का

क्या हक़ अदा करेगा ज़माना हुसैन का,
अब तक ज़मीन पे क़र्ज़ है सजदा हुसैन का।
झोली फैला कर मांग लो मोमिनो,
हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का।

अपनी तक़दीर जगाते हैं तेरे मातम से

अपनी तक़दीर जगाते हैं तेरे मातम से,
खून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से।
अपने इज़हार-ए-अक़ीदत का सिलसिला ये है,
हम नया साल मनाते हैं तेरे मातम से।

दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया

दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया,
जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया।
हर जर्रे को नज़फ का नगीना बना दिया,
हुसैन, तुमने मरने को जीना बना दिया।

सबा भी जो गुजरे कर्बला से

सबा भी जो गुजरे कर्बला से, तो उसे कहता है अर्श वाला,
तू धीरे गुजर, यहाँ मेरा हुसैन सो रहा है।

ना पूछ वक़्त की इन बेजुबान किताबों से

ना पूछ वक़्त की इन बेजुबान किताबों से,
सुनो जब अज़ान तो समझो के हुसैन जिंदा है।

खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने

खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने,
रस्म-ए-वफ़ा को खूब निभाया हुसैन ने।
खुद को तो एक बूँद न मिल सका लेकिन,
कर्बला को खून पिलाया हुसैन ने।

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है

हुसैन तेरी अता का चश्मा दिलों के दामन भिगो रहा है,
ये आसमान में उदास बादल तेरी मोहब्बत में रो रहा है।

यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का

यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
कुछ देख के हुआ था जमाना हुसैन का।
सर दे के जो जहाँ की हुकूमत खरीद ली,
महँगा पड़ा यजीद को सौदा हुसैन का।

. कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी

कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी,
खून तो बहा था लेकिन,
कुर्बानी हौसलों की उड़ान दिखा गयी।

आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे

आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे,
ताबीर में इमाम का जलवा तो दिखायी दे।
ए इब्न-ऐ-मुर्तजा सूरज भी,
एक छोटा सा जरा दिखायी दे।

कर्बला की जमीं पर खून बहा

कर्बला की जमीं पर खून बहा,
कत्लेआम का मंजर सजा।
दर्द और दुखों से भरा था सारा जहां,
लेकिन फौलादी हौसले को शहीद का नाम मिला।

दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया

दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया,
जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया।
हर जर्रे को नज़फ का नगीना बना दिया,
हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया।

खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने

खून से चराग-ए-दीन जलाया हुसैन ने,
रस्म-ए-वफ़ा को खूब निभाया हुसैन ने।
खुद को तो एक बूँद न मिल सका लेकिन,
कर्बला को खून पिलाया हुसैन ने।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न(FAQ)

मुहर्रम शायरी क्या है?

मुहर्रम शायरी वह शेर या कविताएँ हैं, जो मुहर्रम के पवित्र महीने के दौरान हजरत इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला की घटना को श्रद्धांजलि देने के लिए लिखी जाती हैं। ये शायरी आमतौर पर इस्लामी आस्था, बलिदान, और इंसाफ की रक्षा के प्रतीक के रूप में होती हैं।

मुहर्रम शायरी को क्यों लिखा जाता है?

मुहर्रम शायरी का उद्देश्य हजरत इमाम हुसैन की शहादत और उनके महान संघर्ष को याद करना है। यह शायरी इस्लामिक समुदाय को उनकी कुर्बानी और कर्बला की घटना से जुड़ी गहरी भावनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करती है।

क्या मुहर्रम शायरी सिर्फ मुस्लिम समुदाय तक सीमित होती है?

नहीं, मुहर्रम शायरी का संदेश इंसानियत, न्याय और सत्य की रक्षा के बारे में है, इसलिए यह सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को प्रेरित कर सकती है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत ने पूरे विश्व में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है।

मुहर्रम शायरी को कहां और कब साझा किया जा सकता है?

मुहर्रम शायरी को मुहर्रम के महीने में विशेष रूप से शेयर किया जाता है, खासकर दसवीं मुहर्रम (आशूरा) के दिन। आप इसे अपने दोस्तों, परिवार, और सोशल मीडिया पर साझा कर सकते हैं ताकि हुसैन की शहादत को याद किया जा सके और उनकी प्रेरणा को फैलाया जा सके।

मुहर्रम शायरी के माध्यम से क्या संदेश दिया जाता है?

मुहर्रम शायरी के माध्यम से हुसैन की शहादत का संदेश दिया जाता है, जो सत्य, इंसाफ, और न्याय की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का प्रतीक है। यह शायरी हमें अपने हौसले और विश्वास को मजबूत करने की प्रेरणा देती है।

निष्कर्ष

मुहर्रम की शायरी न केवल हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाती है, बल्कि इस्लामिक आस्था, बलिदान और सत्य के प्रति अडिग विश्वास की भी प्रतीक है। इन शायरियों के माध्यम से हम इमाम हुसैन के अदम्य साहस और उनके संघर्ष को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुहर्रम के इस पवित्र माह में, ये शायरियाँ हमें न केवल याद दिलाती हैं कि किस तरह इमाम हुसैन ने अपने प्राणों की आहुति दी, बल्कि हमें इंसानियत, न्याय और समर्पण की सिख भी देती हैं। इन शायरियों को पढ़कर और साझा करके हम अपनी आस्था को मजबूत कर सकते हैं और हुसैन के संदेश को आगामी पीढ़ियों तक पहुंचा सकते हैं।

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